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नासमझ वाला समझ

ऑपरेशन सिन्दूर पर राहुल गांधी की स्पीच में जो ब्रिलियन्स थी है, वो बिखरे तथ्यों को जोड़कर सॉलिड कन्क्लूजन निकालने के कौशल से समझ आता है। उनकी स्पीच के बाद लगा कि ये बाते तो हर इंसान के सामने थी।  पर हम लोगो ने इसे समझा क्यो नही?  ◆●◆ तीन एस्टेब्लिस्ड बाते है.. सबको पता है।  1- सरकार द्वारा पाकिस्तान को ऑपरेशन सिन्दूर की पूर्व सूचना देना 2- सिर्फ "आतंकी" ठिकानों को उड़ाने का इरादा बताकर, पाक को एस्केलेशन न करने की इल्तजा करना (आप धमकी कह कर खुश हो लें) 3- इस वादे की पूर्ति में अपनी एयरफोर्स को, पाक मिलिट्री टारगेट न छूने को कहना।  ●● अब मतलब यह कि आपने पाकिस्तान को अलर्ट करके, हाथ बांधकर,  उनकी सीमा में अपने पायलट ठेल दिए। अब किसी देश की सीमा में फाइटर प्लेन्स, आपने आतंकी ठिकाने उड़ाने जैसे पवित्र काम के लिए भेजा हो, या घास छीलने। उनके एयरस्पेस में अनाधिकृत घुस तो रहे हैं।  वो मिसाइल मारेगा ही। ●● तब मिसाइल मारने वाले एयर डिफेंस सिस्टम को, अनटचेबल बनाकर, न्यूट्रलाइज करने की इजाजत आपने दी नही।  तो वो रेडी है, गोलियां मिसाइल बरसा रहा है।  आप निशाने प...

पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे खराब

पढ़ने लिखने से क्या फायदा?  जी हां। चीन के उदाहरण से समझिए। नए आंकड़े बताते है कि चीन में बेरोजगारी 21% तक पहुँच गई है।  ●● यह समस्या शिक्षा के कारण आयी है।  ऐसा नही की चीन में रोजगार नहीं। पर इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी और स्कूल मुफ्त एवलेबल है कि हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा क्वालिफिकेशन के साथ स्किल्ड भी हो जाता है।  तब ऊंची तनख्वाह चाहता है, व्हाईट कॉलर जॉब चाहता है। औऱ चीनी कम्पनियों के, इतनी मात्रा में उस तरह के जॉब्स नहीं है।  ●● भारत मे भी रोजगार के अवसरों की कोई कमी है। रोजगार इफ़रात में एवलेबल हैं।  आप जब चाहें, जमाटो का डिलीवरी बॉय बन सकते हैं। सिक्युरिटी गार्ड बन सकते हैं, अग्निवीर बन सकते है।  यदि कोई सिनेमा हॉल या संसद के सामने पकौड़े का ठेला लगाता है, तो वहां बर्तन धोकर भी आप दिन कब 300 घर ले जा सकते हैं।  सत्य यह है कि कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन, प्लम्बर, सफाई कर्मचारी, टेलर, इन जॉब्स में इसलिए कोई नही जाना चाहता। सिर्फ इसलिए कि उसने पढ़ाई कर ली है।  ●● उसके पास एक डिग्री है,  फैंसी यूनिवर्सिटी की।  बोलने का शउर नही, लिखने को चैट ...

परंपरा और परवरिश

राजदरबारो में एक परम्परा होती थी। राजा जब दरबार में प्रवेश करने वाला होता, उसके पहले दरबार के प्रतिहारी को सूचित कर दिया जाता। ●● तब वह उच्च स्वर में आवाज लगाता, और सभी दरबारियों या आयी हुई जनता को अटेंशन की मुद्रा में लाने के लिये महराज की अगवानी का उद्घोष करता। सावधान, सावधान, सावधान! चक्रवर्ती!!, महा-महिमाधिराज, देवानांप्रिय,  परमभट्टारक!!, विक्रमादित्य, जगद्गुरु, नरपति, धर्मरक्षक, सिंहासनाधीश्वर, सर्वभौम,... राजाधिराज, विश्वविजयी,  भूपति, नृपेंद्र,  धर्माधिपति, सहस्रबाहु, पराक्रमभट्टारक,  पृथ्वीपाल, विश्वनाथ महाराज श्री श्री मूंगफली जी महाबली ... पधार रहे है ssss प्राचीन भारत मे कुछ ऐसा होता था। ●● फिर इस्लामी आ गए। लेकिन सिस्टम वही बना रहा। तब कुछ इस तरह से आवाज आती... बा अदब, बा मुलाहिजा, होशियार.. सुल्तान-उल-हिंद  खलीफतुल्लाह, आलमगीर, जाम-ए-जमजम, अमीर- उल- मोमिनीन, दुर्रे दुर्रान, सुल्तान  पादशाह, गाजी,  ज़िल्ल-उल्लाह, जिल्लेसुभानी, खुदावंद, सुल्तान-उल-आदिल, शाह-ए-दीन, मुजाहिद,  हजरत, ख्वाजा अलफूल- उल- मसूर की दाल पधार रह...

नशा कॉमिक का

क्या आपने कभी कॉमिक्स पढा है?  बचपन से खूब कॉमिक्स पढ़ने के कारण, मेरी कल्पना शक्ति की मसल्स, काफी डेवलप हुई।। प्राण के बनाये देसी कैरेक्टर- चाचा चौधरी, बिल्लू, रमन, पिंकी, ने मेरी सहज सुलभ हास्य प्रवृति को आकार दिया। मैं बचपन से ही चाचा चौधरी जैसा, कम्प्यूटर से तेज दिमाग वाला बनना चाहता था।  ◆●◆ डायमंड कॉमिक्स बालसुलभ मानवीय प्रवृत्ति को बढ़ावा देती। पर जब किशोर हो गए तो राज कॉमिक्स पढ़ते।  मेरा फेवरिट था सुपर कमांडो ध्रुव। राजनगर की गलियों में अपनी स्पेशल मोटरसाइकिल में गश्त लगाता ध्रुव,  मानवता के दुश्मनों को रोज ही खाक में मिलाता।  और क्या ही मसल्स थी उसकी। नीली पैंट के ऊपर पीली चड्डी पहनकर जब ध्रुव निकलता तो संघियो की ऐसी तैसी कर देता।  सबसे बड़ी बात- वह अपना कोई स्पेसिफिक कोई हथियार लेकर नही चलता था। हिम्मत, मेहनत, ईमानदारी और पाठकों का आशीर्वाद उसका कवच थे।  वह आसपास के लकड़ी, पत्थर, बिजली के खम्बे वगैरह जो मिल जाये, उससे लड़ता। दुश्मन से हथियार छीनकर उसी से हथियार से उसको निपटाता।  तो मैं किशोरावस्था में सुपर कमांडो ध्रुव बनना चाहता था। स्...

शतरंज और युद्ध

भारतीय उपमहाद्वीप के लोग, युद्ध को शतरंज की तरह खेलते हैं।  शतरंज में एक राजा होता है।  मंत्री, प्यादा, हाथी, घोड़े, होते है। ●● सब लड़ाकों के दायरे हैं। ऊंट तिरछा चलेगा, हाथी सीधा, घोड़ा ढाई घर। प्यादा एक घर सीधा चलेगा, पर मारेगा तिरछा।  खेल का ऑब्जेक्टिव- अपने राजा को बचाना दुश्मन राजा को मारना है।  तो इसके लिए प्यादे को मरना है, ऊंट घोड़े हाथी को मरना है। दुश्मन के प्यादे मारने हैं। उसके ऊंट घोड़े हाथी, मंत्री, राजा मारने है।  मरने है, मारने हैं।  ●● आम भारतीय मरने- मारने की सोचता है। 1 के बदले 10 सर,  मेरे 2 जहाज गिरे, उनके 20 गिराए।  मेरे 28 नागरिक मरे, तेरे 100 (आतंकी) मारे। तो भाई, स्कोर बोर्ड में हमारे रन ज्यादा हैं, जीत हमारी मानी जाए। ●● हमारी सोच खूनी है।  हां हां, वीरतापूर्ण है। हम प्राणोत्सर्ग करने, त्याग, बलिदान, शहादत देने और मार डालने, पीट देने जैसी भावनाओ से ड्राइव होते हैं।  सीमा के दोनों तरफ, हम एक ही DNA के लोग, एक ही तरह की खूनी किलकारी मारते हैं। ●● चीन का खेल अलग है।  "चाइनीज गो" या वेई गूगल कीजिए। इस खेल में ...

चेतावनी चेतावनी चेतावनी

साहेब की चेतावनी  वर्षों तक फॉरेन घूम-घूम, नेता नटनी को चूम-चूम, सह जेटलैग, मशरूम चखकर साहेब आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। ●● मैत्री की राह बताने को, शहबाज को सुमार्ग पे लाने को, पाकिस्तान को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, जयशंकर टीवी, पर आये, मोदी का संदेशा लाये। अब बम मिसाइल मारेंगे दो चार हेडलाइन काढ़ेंगे अपने भक्तों को लुभाएंगे तुम पर असि न उठायेंगे! ●● पाकिस्तान फिर भी समझ न सका  आशीष हमारी ले न सका, उलटे रफेल को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश पाक पर छाता है, वह हिन्द से लड़ने आता है।  ●● प्रभु ने अपना विस्तार किया टीवी पे गजब हुंकार किया, भौंडे-तोतले एंकर बोले, व्हाट्सप में एडमिन मुख खोले  भगवान, टेलीप्रोम्पटर पढ़ बोले  यह देख, US मुझमे लय है, यह देख, UK मुझमें लय है, मुझमें विलीन है क्वाड सकल, मुझमें है लय, नाटो हर पल मेडीसन झूमता है मुझ में, वेम्बले कूदता है मुझमें। मुड़ जाता मेरा प्लेन जिधर NRI ठुमकते, जी भर कर ●● डोलैण्ड है मेरा दीप्त भाल, पुतिन मेरा वक्षस्थल विशाल, ईरान, UAE मेरे फ्रेंड कर देंगे, त...

न भूतो न भविष्यति

इट्स आल अबाउट इकॉनमी, स्टुपिड !!!    क्लिंटन के इलेक्शन कैंपेन की टैगलाइन बनाया था।  15 साल पहले, राजीव इसे करके दिखा चुके थे। यह शख्स जानता था, कि विकास का मतलब, अर्थव्यवस्था है। ●● वित्तमंत्री के रूप में एक बार बजट पेश किया राजीव ने- 1987-88 का। और वो देश का अनोखा बजट था - शून्य आधारित बजट। हार्डवर्क वाले इसे नही जानते, रॉ विज़डम वालो को नही पता, ये एक मैनेजमेंट टूल है, ख़र्चपर नियंत्रण का। पारंपरिक बजट में, होता ये है, की पिछले साल जो खर्च अनुमत था, इस साल भी सही मान लिया जाता है। बहस कुछ घट बढ़ की होती है। इसका मतलब की 90 के दशक तक पुलिस वालों को 15 रुपये घोड़ा'चना एलाउंस मिलता है। पुराने साल की परंपरा पर, अरबों का खर्च निकाल देना, करप्शन, और जवाबदेही से बचने का मार्ग था।जीरो बेस्ड बजट हर खर्च पर सवाल करता है। इस पर खर्च 0 क्यो नही होना चाहिये? क्या इसकी जरूरत है? जीरो बेस्ड बजटिंग, फेजेस में, अगले 3 साल में पूर्णतया लागू की जानी थी। यह प्रयास एक विडंबना का शिकार हुआ। ●● राजीव पर भ्रस्टाचार का आरोप लगाकर बदनाम करने वाले  VP अगले पीएम बने। ईमानदारी के उ...