पढ़ेंगे लिखेंगे होंगे खराब
पढ़ने लिखने से क्या फायदा?
जी हां। चीन के उदाहरण से समझिए। नए आंकड़े बताते है कि चीन में बेरोजगारी 21% तक पहुँच गई है।
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यह समस्या शिक्षा के कारण आयी है।
ऐसा नही की चीन में रोजगार नहीं। पर इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी और स्कूल मुफ्त एवलेबल है कि हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा क्वालिफिकेशन के साथ स्किल्ड भी हो जाता है।
तब ऊंची तनख्वाह चाहता है, व्हाईट कॉलर जॉब चाहता है। औऱ चीनी कम्पनियों के, इतनी मात्रा में उस तरह के जॉब्स नहीं है।
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भारत मे भी रोजगार के अवसरों की कोई कमी है। रोजगार इफ़रात में एवलेबल हैं।
आप जब चाहें, जमाटो का डिलीवरी बॉय बन सकते हैं। सिक्युरिटी गार्ड बन सकते हैं, अग्निवीर बन सकते है।
यदि कोई सिनेमा हॉल या संसद के सामने पकौड़े का ठेला लगाता है, तो वहां बर्तन धोकर भी आप दिन कब 300 घर ले जा सकते हैं।
सत्य यह है कि कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन, प्लम्बर, सफाई कर्मचारी, टेलर, इन जॉब्स में इसलिए कोई नही जाना चाहता। सिर्फ इसलिए कि उसने पढ़ाई कर ली है।
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उसके पास एक डिग्री है,
फैंसी यूनिवर्सिटी की।
बोलने का शउर नही, लिखने को चैट जीपीटी चाहिए। रील का आदती है, सो 40 सेंकेड के आगे एक कागज, एक स्क्रीन को देखने मे ऊब होती है।
लेकिन तनख्वाह चाहिए पचास हजार। चीन अब भी माथा ठोक रहा है। पर हमने समस्या का समाधान निकाल लिया है। न रहे बांस, न बजे बांसुरी...
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तो ग्रामीण स्कूलों का बन्द होना रणनीतिक दूरदर्शिता है। वैसे भी भवन बनाकर,दो टीचर बिठा देने से वह स्कूल नही बनता। यह पूरा इकोसिस्टम है, जिसमे छात्र, शिक्षक और प्रविधियां मिलकर बनाते है।
और सरकार के पास यह सब करने को नही बनाई जाती। युद्ध लड़े, धर्म बचाये, या स्कूल चलाये?
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फिर होगा आखिर यही, कि पढ़ लिखकर ये बच्चे लोग बड़े बड़े जॉब्स मांगेंगे।
देगा कौन?
सरकार को अपना आकार कम करना है, पेंशन वेतन बचाने हैं। तो वहां जॉब्स होंगे नही। सरकारी उद्यम बेच डाले, बिकॉज गर्वमेंट है नो बिजनेस टू डू बिजनेस।
और उसे खरीदने वाली निजी कम्पनी मुनाफा देखेगी या जॉब्स। छोटे उद्योग/ MSME सेक्टर, देश के बड़े बड़े ब्रांड्स को नाहक कम्पटीशन देते थे। उन्हें भी निपटा दिय है।
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बालक अनपढ़ रहेगा, तो सरकारी नौकरी नही सरकारी पार्टी जॉइन करेगा। एक ही तो बात है। इस रास्ते से पॉवर का हिस्सा बनेगा, डेमोक्रेटिक और देशभक्तिपूर्ण जयजयकार करेगा।
खर्चा पानी आसपास के कर्मचारियों से ट्रांसफर पोस्टिंग में कमीशन, और अफसरों को दरकार रंगदारी से वसूल लेगा। इसकी ब्यूटी यह है कि इसका खर्च टैक्सपेयर्स पर नही आता।
स्मार्ट मूव टू सेव एक्सचेकर्स मनी।
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स्कूल बंद होना एक चक्रीय विधि है। जैसे, आज स्टाफ की कमी है, तो कुछ स्कूल बंद हुए। बच्चा 2 किलोमीटर दूर शिफ्ट हो गया।
टीचर्स की नियुक्ति आगे भी न करेंगे। 3-4 साल में फिर स्टाफ की कमी होगी। स्कूल फिर शिफ्ट होगा। 8-10 किमी पर...
और कुछ साल बाद 20-50 या सौ किमी पर। आदमी न पढ़ेगा, न बेरोजगारी का दोष देगा।
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पर उसे विकल्प मिलेगा। निजी यूनिवर्सिटी, निजी स्कूल। वे निस्संदेह अच्छी शिक्षा देंगे। जनता भी एडजस्ट कर लेगी।
आखिर पहले वह सस्ती ट्रेनों में आना जाना करती थी। सरकार सब्सिडाइज टिकट भी देती थी। लोगो ने यहाँ वहां जाकर क्या ही तीर मार लिया??
अब रेलवे मौत की कगार पर है। लोग ब्लेक में वंदे भारत की टिकट लेकर, या ब्लेक में बिकते पेट्रोल (असल कीमत का 3 गुने पर बिकना ब्लेक मार्केटिंग कहलाता है) खरीदकर, हर किलोमीटर पर टोल देकर, अपनी गाड़ी में,यात्रा करते है,
और यूरोप जैसा इंफ्रा देखकर गर्व फील करते हैं। प्राइवेट स्कूलों को देखकर भी गर्व फील करेंगे।
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सबसे अच्छी बात, बन्दा औकात में रहेगा। नीच जात वाले, ज्यादा पढ़कर हकदारी, सम्विधान और तमाम नेतानगरी न करेंगे।
सस्ते मैनुअल जॉब करेंगे,जो वेतन मिले, उसमे खुश रहेंगे।मजदूरों, चौकीदारों, क्लीनर्स, ड्राइवर्स, मेसन्स की कमी न होगी। तो वेज रेट भी नीचे होंगे, 15-20 हजार में काम करने वालो की लाइन लगी होगी।
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इससे प्रोडक्शन कॉस्ट घटेगी। हमारे उत्पाद विश्व मे कम्पटिटिव होंगे। हमारी कम्पनियां विश्व रैंकिंग में आएंगी, 100-50 नये बिलियनैयर बनेंगे।
उनकी फोटो अखबार में, और जीवन शैली वेब सीरीज के देखकर हम आनंदित होंगे। देश के खुशहाली आएगी।
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तो स्कूलों के बंद होने को रैंडम इवेंट न समझिये। यह एक नया भारत बनाने की दिशा में एक सोचा समझा कदम है। 2047 तक इस देश के अरबपतियों की संख्या अगर चार गुनी बढ़ानी है,
तो स्कूलों को घटाकर एक चौथाई करना सबसे पहला, और जरूरी कदम है। इसलिए ही तो सम्विधान निर्माता, बाबा साहब ने अपनी किताब एल्हिनेशन ऑफ द नेशन में कहा है..
पढ़ने लिखने से क्या फायदा?
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