हिन्दू गांव में एक घर

बाबा बागेश्वर बनाएंगे हिन्दू गाँव..

ये सुंदर केस स्टडी है। पर पहले, हिन्दू राष्ट्र / मुस्लिम राष्ट्र को संक्षिप्त में समझिए।
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हिन्दू और मुस्लिम, पूजन पद्धति है, पंथ, कल्ट, संस्कृति, जीवन शैली है।ये आपकी पत्नी या पति, मां, बाप, साबुन, तेल, टूथपेस्ट की तरह पूर्णतया निजी वस्तु है।

राष्ट्र एक राजनीतिक व्यवस्था है।

यह यह सार्वजनिक व्यवस्था है। एक विशिष्ट भूभाग के सभी व्यक्ति, सारे समाज, बिना कॉन्फ्लिक्ट, न्यूनतम सहमतियों के आधार पर एक साथ, कुछ नियम कायदों के तहत रहें।
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आप लाइफबॉय से नहाए, पड़ोसी लक्स से। यह पसन्द जन्म से आपके पल्ले पड़ी, या आपने चॉइस भी किया हो सकता है- (भले ही राइस बैग लेकर)

लेकिन निजी जीवन में, चार दीवारों के भीतर। वहां रहो कट्टर रामभक्त या कट्टर सुन्नतवादी। बाथरूम में लक्स से नहाओ, या रिन से..

सरकार द्वारा निर्धारित, कोई राष्ट्रीय साबुन नही होना चाहिए।देश की राजव्यवस्था, साबुन निरपेक्ष होनी चाहिए।

धर्मनिरपेक्ष भी होनी चाहिए।
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साबुन का मामला आसान है। क्योकि साबुन के साथ कोई किताब नही जुड़ी। धर्म के साथ जुड़ी होती है।

संविधान एक सेट ऑफ रूल्स है।
धार्मिक किताब भी सेट ऑफ रूल्स देती है।

दोनों सेट ऑफ रूल्स अलग हो सकते है।
तब किसकी बातें मानी जायें?
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मुसलमानी किताब, जिना करने पर पत्थर मारने का नियम देती है। सविधान प्रदत्त कानून इसी मामले में जेल, जुर्माने की व्यवस्था देती है।

हिन्दू किताब, जाति और ऊंच नीच की व्यवस्था देती है। सम्विधान मना करता है, सबकी बराबरी की तजवीज करता है।

याने हमारी धार्मिंक किताब औऱ राजकीय किताब में अलग अलग व्यवस्था है।
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सम्विधान लिखित है। आधुनिक है, संशोधन करके अपडेट बनाये रखने का रास्ता है। उसमे जो कुछ लिखा है, उसका इंटरप्रिटेशन करने को एक सुप्रीम कोर्ट है।

जो दलीलो के आधार पर, उचित और सकारण इंटरप्रिटेशन देता है। दलील देने, सुनने वाले, समाज के मूर्धन्य लोग है। शिक्षित और राजव्यवस्था से परिचित लोग हैं।

धार्मिक किताबे पुरानी है। किसी और ही दौर के सेट ऑफ रूल्स है। उनमे बदलाव की व्यवस्था नही, अपडेट कर नही सकते

किसी और भाषा में लिखी है। जो लिखा है, उसका इंटरप्रिटेशन कोई भी मुल्ला, बाबा, या पादरी करेगा।
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पाकिस्तान एक इस्लामी राष्ट्र है। वहाँ सम्विधान तो है, पर धार्मिक किताब उसके ऊपर है। भारत,अब तक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ सम्विधान हर किताब के ऊपर है।

यही धर्मनिरपेक्ष व धार्मिक देश में फर्क है।

तो पाकिस्तान में संसद द्वारा बनाया गया कोई कानून, गैर इस्लामी बताकर मुल्ले खारिज कर सकते हैं। भारत मे बागेश्वर बाबा, आशाराम, और जग्गी वासुदेव और डबल श्री के पास वह पावर नही है।
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वह पावर धीरे धीरे सौंपी जा रही है।

नई संसद में सेंगोल लेकर चलते, सम्राट मोदी और उनके पीछे चलते साधुओ की फौज को याद कीजिए।जैसे उनकी सत्ता ईश्वर और उनके उपासक साधुओ ने दी, धर्म ने दी, भाग्य ने दी, ईवीएम के जिन्न ने दी।

जनता ने नही।

तमाम धर्म संसदें हो रही है। सम्राट टीका लगाकर, झोगला पहनकर मन्दिर मन्दिर घूम रहा है।

अभी अघोषित रूप से "सरकारी राम नवमी" मनाई जाने वाली है। फरसा लेकर आप नाचेंगे।
न नाचा, तो अधर्मी, गैर हिन्दू, गद्दार कहलाएंगे। यह सामाजिक दबाव आप पर डाला जा रहा है।
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आप राजव्यवस्था को, जितना ज्यादा धर्म के पहलू में घुसने की इजाजत देंगे, आपकी ताकत घटेगी, सम्राट की बढ़ेगी।

आप नागरिक नही, श्रद्धालु होते जाएंगे। संसद, कानून, सम्विधान, लोकतंत्र बेमानी हो जाएंगे। सम्राट और उनके राजगुरु का निरंकुश शासन होगा।

धर्म के नाम पर होगा।

धरने प्रदर्शन नही, आप इल्तजा करेंगे। राम राज्य आ गया है, तो "जाहि विधि राखे राम, ताहि बिधि रहना" अपना भाग्य समझेंगे।
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लगभग उस नौबत में आ चुके हैं।

बुलडोजर पर चढ़कर आये राम, न्याय बिखरा कर जा रहे हैं। और चीफ जस्टिस.. सम्राट के संग पूजा पाठ कर रहे हैं।

यही वो ऐतिहासिक ग्लोरी थी, जो प्राचीन गर्व और विश्वगुरु बताकर आपके गले उतार दिया गया।
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अब इस अनौपचारिक हिन्दू राष्ट्र को औपचारिक बनाएंगे। एक गाँव से शुरुआत होगी।

बाबा बागेश्वर इसके अधिष्ठाता होंगे।

फिर तहसील बनेगी, फिर जिला, राज्य और देश। इसके ऊपर बाबा होगा। बाबा समर्थित राजा होगा।

कानून, नियम सम्विधान ये एप्रूव करेंगे। इन्त्रप्रिटेट करेंगे। न पसन्द आये, तो खारिज कर देंगे।
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फिर होगा एक राष्ट्र, एक धर्म, एक राजा, एक साबुन, एक दन्तमंजन, एक रोटी

और एक जूता,

जो विरोध करने वाले के खोपड़े पर पड़ेगा।इन सबकी सुनहरी शुरुआत का उद्घोष हो चुका है। अब देश का पहला हिन्दू गाँव बसाने की शुरुआत हो चुकी है।

अनपढ़, सर्कस-बाज बाबे हिन्दू राष्ट्र की नींव रखेंगे।

बधाई!!

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