नशा कॉमिक का
क्या आपने कभी कॉमिक्स पढा है?
बचपन से खूब कॉमिक्स पढ़ने के कारण, मेरी कल्पना शक्ति की मसल्स, काफी डेवलप हुई।।
प्राण के बनाये देसी कैरेक्टर- चाचा चौधरी, बिल्लू, रमन, पिंकी, ने मेरी सहज सुलभ हास्य प्रवृति को आकार दिया। मैं बचपन से ही चाचा चौधरी जैसा, कम्प्यूटर से तेज दिमाग वाला बनना चाहता था।
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डायमंड कॉमिक्स बालसुलभ मानवीय प्रवृत्ति को बढ़ावा देती। पर जब किशोर हो गए तो राज कॉमिक्स पढ़ते।
मेरा फेवरिट था सुपर कमांडो ध्रुव। राजनगर की गलियों में अपनी स्पेशल मोटरसाइकिल में गश्त लगाता ध्रुव, मानवता के दुश्मनों को रोज ही खाक में मिलाता।
और क्या ही मसल्स थी उसकी। नीली पैंट के ऊपर पीली चड्डी पहनकर जब ध्रुव निकलता तो संघियो की ऐसी तैसी कर देता।
सबसे बड़ी बात- वह अपना कोई स्पेसिफिक कोई हथियार लेकर नही चलता था। हिम्मत, मेहनत, ईमानदारी और पाठकों का आशीर्वाद उसका कवच थे।
वह आसपास के लकड़ी, पत्थर, बिजली के खम्बे वगैरह जो मिल जाये, उससे लड़ता। दुश्मन से हथियार छीनकर उसी से हथियार से उसको निपटाता।
तो मैं किशोरावस्था में सुपर कमांडो ध्रुव बनना चाहता था। स्किन टाइट नीली ड्रेस पर पीली चड्डी पहनकर घूमना कठिन था, पर मैनें हेयर स्टाइल एकदम ध्रुव की तरह थी।
और यह बात सिर्फ मैं ही जानता था।
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मधुमुस्कान के डैडीजी, पोपट चौपट, शक्तिमान, मोटू पतलू, घसीटा राम, पान सिंह, फौलादी सिंह वगैरह साथ साथ चलते रहे।
सुमन सौरभ की कहानियां, मूर्खिस्तान पढ़ते। कभी क्रिकेट सम्राट और विज्ञान प्रगति भी ले आते।
इतना पढ़ोगे तो सारे कॉमिक्स दुकानों का सारा कलेक्शन खत्म हो जाना था। तो हम पॉकेट बुक्स की तरफ मुड़े।
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यह एक नई दुनिया थी। मैनें राजन इकबाल के नॉवेल्स पढ़ना शुरू किया। बता दूं कि जिन नॉवेल्स के पीछे एस सी बेदी के वो शॉल की फोटो छपता था, सिर्फ वही असली नावेल होते थे।
यह बात स्वयं एससी बेदी ने शॉल वाली फोटो के साथ लिखकर बताई थी। मैं सिर्फ असली नॉवेल पढ़ता था। हालांकि सब सब असली नॉवेल पढ़ लिए, तो नकली भी पढ़ ही डाला।
इकबाल का फनी कैरेक्टर मुझे पसन्द था। इकबाल की एक गर्लफ्रैंड थी। दोनो झकलेट थे, और डायलॉग्स पढ़ने में मजा आता।।
फाइट में भी, राजन हवाई किक मारता, इकबाल जमीन पर फिसल कर दुश्मन की टांगो पे वार करता। उन्हें कैची बनाकर बेबस कर देता और मुक्कों से बेहाल कर देता। एक एक दृश्य फ़िल्म की तरह आंखों के सामने घट रहा होता।
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अब तक मैं ग्यारहवीं तक आ चुका था। कामनाएं जागृत हो चुकी थी। असली अक्कूम बककुम तो अंग्रेजी में मिलना था। हमने मिल्स एंड बून के नावेल को चुना।
एकदम सुपर रोमांटिक, डेढ़ सौ पेज की किताब में कहीं पे 6 पेज का लम्बा रसीला प्रेम दृश्य होता।सारी नावेल ही उस दृश्य के लिए लिखी होती।
इस तरह की नॉवेल्स ने मुझे अंग्रेजी पढ़ने को प्रेरित किया। दरअसल, 150 पेज आप अंग्रेजी डेढ़ दिन में खत्म कर लें, तो 900 पेज की किताब भी पढ़ने की हिम्मत कर सकते हैं।
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और मैंने मारियो पूजो, फ्रेडीक फोरसिथ, सिडनी शेल्डन, रॉबिन कुक, लुडलुम को पढ़ा। आगे जेफ्री आर्चर फेवरिट हुए। तब तक बने रहे, जब तक कि प्रिजन डायरी और हैरी क्लिफ्टन जैसा सरदर्द लिखना शुरू न कर दिया।
इस दौरान में घर मे पापाजी के लिए आने वाली उपलब्ध माया, इंडिया टुडे, रविवार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, हंस वगैरह पर भी हाथ साफ कर लेते।
दीदी हमारी गुलशन नंदा से प्रेमचंद तक सब पढ़ती, तो वह भी पढ़ लेते।
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पापाजी के जूते पॉलिश और स्कूटर पोछाई से मिलने वाली पॉकिट मनी, सब इन किताबो के किराए, या खरीद में भस्म हो जाती।
बाद में कैसेट खरीदने और गाने भरवाने खर्च भी बढ़ गया। सब्जी खरीदी के मुनाफे, या एग्जाम देने जाने के लिए मिले ट्रेन टिकट के पैसे-(जो WT जाकर गबन कर लिये जाते) वह भी इसमें लुट गए।
सच है, बेईमानी की कमाई टिकती नही।
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और बहुत पैसा बर्बाद भी हुआ। नशा इतना था, की शौक में बहुत फालतू कैरेक्टर भी पढ़ डालते- जादूगर मेंड्रेक और वेताल, जो इंद्रजाल कॉमिक्स में आते। नागराज और डोगा..
ये अजीब कैरेक्टर थे। बांकेलाल भी बकवास ही था, पर मजेदार था। हिहिहि।
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पर सबसे स्टूपिड आइडिया तुलसी कॉमिक्स में अंगारा था।
वह बायलोजिकल नही था।
अंगारा – एक विलक्षण प्राणी था। वह गोरिल्ले के शरीर मे लोमड़ी का दिमाग, हाथी की स्किन, गैंडे की खाल, गिद्ध की आंखे और शेर का दिल प्रत्यारोपित करके बनाया गया था।
व्हेल के मुंह मे बैठकर समुद्री सफर करता, कभी उसका बाज कंधे से पकड़ हवाई यात्रा करवाता। वह पशु अधिकारों के लिए मनुष्यो से लड़ता। जानवर उसका साथ देते।
ऐसा कहीं होता है भला?
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मुझे यकीन नही हुआ। जब तक कि मोदी जी ने शपथ न ले ली।
खैर!!!!
तो क्या आपने कभी कॉमिक्स पढा है?
❤️
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